इस्लाम में 6 कलमे और खुत्बा 2024
खुत्बा : वो कलमा मुबारक जिसे पढ़ने से दुनिया व आख़िरत मुसीबतो से बची रहती है
दुनिया में तंग व दो से मक़ाम पैदा करने वालो की राहे अक्सर मुश्किलात की वजह से बंद और तंग हो जाती है :
दुनिया में अपनी तंग व दो से मक़ाम पैदा करने वालो की राहे अक्सर मुश्किलात की वजह से बंद और तंग हो जाती है उन की उम्मीद टूट जाती है ग़ुम रह हो कर वो गुनाहो और शिर्क में पढ़ जाते है जादू टोना के वहेमो में पढ़ जाते और डिप्रेशन में मुब्तिला हो जाते है
आज हम आपको एक ऐसी कलमा पाक की ख़ुसुसियात से मुतारीफ कराते है जिसे पढ़ने वाले पर दुनिया ही क्या आख़िरत की मुश्किलात भी कम हो जाती है
कारोबार हो या मुलाजमत में आराम सुकून :
कारोबार हो या मुलाज़मत में आराम सुकून घरो , पोसीदा या ना इक्तिलाफ़ी हो या काले जादू का खौफ अर्ज़ या कलमा पढ़ने वालो पर शैतानिया अमाल का असर नहीं होगा इस कलमे पाक के ज़िक्र पर जन्नत वाजिब हो जाती है हदीस ए पाक में इस कलमे को जन्नत का खज़ाना करार दिया गया है जाहिर है जो जन्नत का खज़ाना फैलता है उस का रूहानी तोर पर वक़्त बढ़ जाता है और इस पर शैतान की पैदा करदा रोज़ नामा दुनिया में साया हवा और जालिम मुश्किलात दूर हो जाती है और उस पर असर नहीं करते ।
ख़ज़ाने की दुआ :
जन्नत के ख़ज़ाने की तलब करना हर मुस्लमान का हक़ और फ़र्ज़ है इस ख़ज़ाने की दुआ करनी चाहिए इस बारे में ये हदीस ए पाक है हमारे लिए काफी है जिसमे रसूल अल्लाह सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म ने हज़रत अबू मूसा अशअरी से फ़रमाया था के में तुम्हे वो न बतादूँ जो जन्नत का खज़ाना है _ हज़रत अबू मूसा अशअरी ने अर्ज़ की मेरे माँ बाप आप सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म पर फ़िदा फरमाए “
कलमा ये है
रसूल करीम सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म ने फ़रमाया ” तो फिर ये कलमा पढ़ते रहा करों “
” ला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्ल्हा “
अल्लाह का मुसलमानो पर करम :
हम मुसलमानो के लिए इस कलमे की नेमत काफी है हर काम में आसानी और जो काम आप करना चाहते हो उन में अल्लाह की रज़ा शामिल करने के लिए ये कलमा हर किसी को अपनी ज़बान पर जारी वसारी रखना चाहिए किसी भी बुरे काम से रुक जायेगे और जाइज़ कामो में खैरो बरकत पैदा होगी
इक़ामत में तकरार कलमात का क्या हुकुम है ?
रसूल अल्लाह सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म अपने खुत्बा जुम्मा में हम्द बारी ताल्हा ‘ अक़ाइद व इबादात की तालीम ‘ व अज्म व नसीहत और हालात पर तब्सिरा फरमाते थे “
रसूल अल्लाह सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म अपने खुत्बा जुम्मा में हम्द बारी ताल्हा ‘ अक़ीदा इबादात की तालीम व अज़्म व नसीहत और हालात पर तब्सिरा फरमाते थे और ये खुत्बा दो हिस्सों पर मुशतमिल होता था _ आप की उसी सुन्नत को ज़िंदा रखती हुए उम्मत मुसलमा ने तवातिर के साथ खुत्बा जुम्मा के उन मुश्तम्लात को शामिल रखा है , जैसा के हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रदी अल्लाहु अन्हा फरमाते है :
नबी करीम सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म खड़े हो कर खुत्बा दिया करते , फिर बैठते फिर खड़े हो जाते जैसे तुम अब करते हो _
यही वजह है के आज भी अरबी खुत्बा जुम्मा खड़े हो कर दो हिस्सों में दिया जाता है और दरमियान में खतीब चंद लम्हात के लिए बैठता है ‘ और हज़रत अब्दुल्ल्हा बिन उमर रदी अल्लाह अन्हा से ही मरवी है के : नबी करीम सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म दो खुत्बा दिया करते और उन के दरमियान बैठा करते थे ,
और हज़रत जाबिर बिन सुमरा रदी अल्लाह अन्हा ने बयान किया : नबी करीम सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म दो ख़ुत्बे देते थे , जिनके दरमियान आप सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म बैठा करते थे कुरान मजीद पढ़ते और लोगो को नसीहत फरमाते थे ,
खुत्बा जुम्मा के सुन्नतों में एक ये है के दो ख़ुत्बे पढ़े जैसा के हसन बिन जियाद ने इमाम अबू हनीफा से रिवायात की के उन्होंने फ़रमाया इमाम को एक हल्का फ़ुक्ला खुत्बा पढ़ना चाहिए जिसकी इब्तिदा अल्लाह की हम्दो सना , शहादत और रसूल अल्लाह सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म पर दुरूद शरीफ से हो और नसीहत करे और कोई सूरह पढ़े , फिर थोड़ा सा बैठे फिर खड़े हो कर दूसरा खुत्बा दे ,
लिहाज़ा खुत्बा जुम्मा दो हिस्सों में देना और दरमियान में खतीब का थोड़ा सा बैठना सुन्नत रसूल अल्लाह सल्लाहु अलैहि वसल्लम है , अगर कोई एक खुत्बा दे तो फिर भी खुत्बा अदा हो जाता है लेकिन वो रसूल अल्लाह सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म की एक सुन्नत से महरूम रह जाता है ।
इक़ामत के अलफ़ाज़ की तादात के बारे में फक़हा करम के दो मज़हब है :
हनफ़ के नज़दीक इक़ामत है अज़ान की तरह कलामात है तकरार है जबके इमाम सलासा के नज़दीक सिवाए तकबीर के इक़ामत के कलामात में तकरार नहीं है ,
इन दोनों मज़हब की बुनयाद हदीस पर है यहाँ सिर्फ हनफ़ के मरकज की ताईद है हदीस पेश की गई है , हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद ने बयान किया है : रसूल अल्लाह सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म की अज़ान और इक़ामत दो दो मर्तबा है
इसी तरह अबू बकर अब्दुल्लाह बिन मोहम्मद बिन अबी शेबा अल कूफ़ी ने सही संद के , इसी तरह अबू बकर अब्दुल्लाह बिन मोहम्मद बिन अबी शेबा अल कूफ़ी ने सही संद के साथ हदीस नक़ल की है के हज़रत अब्दुल रेहमान बिन अबी लेल रदी अल्लाह अन्हा ने बयान किया : हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद अंसारी रदी अल्लाह अन्हा नबी करीम सल्लाहु अलैहि वस्सलम के मुइज़्ज़िन थे वो अज़ान और इक़ामत के अलफ़ाज़ धीरे धीरे अदा करते थे
” नबी करीम सल्लाहु अलैहि वस्सलम ने उन्हें अज़ान उन्नीस कलामात और तकबीर सत्रह कलामात सिखाई ” _
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कलमे
अव्वल कलमा : पहला कलमा तय्यब , ला इलाहा इल्लालहु मुहम्मददुर रसूल्लुल्लाह ,
इसका तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई मआबुद नहीं ( हज़रत ) मुहम्मद ( सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म ) अल्लाह के रसूल है _
दूसरा कलमा : दूसरा कलमा शहादत , अशहदु अनला इलाहा इल्लल्लाहु वहदू ला शारिका लहू व अशहदु अन्ना मोहम्मदा अब्दुहु व रसूलुहु ,
इसका तर्जुमा : मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह के सिवा कोई मआबुद नहीं वो अकेला है उसका कोई शरीक नहीं और मैं गवाही देता हूँ हज़रत मोहम्मद ( सल्लाहु अलैहि वसल्ल्म ) उसके बन्दे और रसूल है _
तीसरा कलमा : तीसरा कलमा तम्जीद, सुब्हानल लाही वल्हम्दुल्लाही वला इलाहा इल्लाहु वल्लाहु अकबर वला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलियिल अज़ीम
इसका तर्जुमा : अल्लाह पाक है और तमाम तारीफे अल्लाह ही के लिए है और अल्लाह के सिवा कोई मआबुद नहीं और अल्लाह सबसे बड़ा है और गुनाहो से बचने की ताक़त और नेक काम करने की क़ुव्वत अल्लाह ही की तरफ से है जो आलीशान और अज़ीम वाला है
चौथा कलमा : चौथा कलमा तौहीद : ला इलाहा इल्लल लाहु वहादु ला शारिका लहु लहुल मुल्कु वलाहुल हम्दु युहयी वयुमीतु वहुवा हइयूल ला यमुतु बियादिहिल खैर
इसका तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई मआबुद नहीं वो अकेला है उसका कोई शरीक नहीं उसी की बादशाही है और उसी के लिए तमाम तारीफे है वो ज़िंदा करता है वही मारता है वो ज़िंदा है जो मरेगा नहीं भलाई उसी के हाथ में है और वो हर चीज़ पर कादिर है
पांचवा कलमा : पांचवा कलमा अस्तगफार : अस्तग़्फ़िरुल्लाह रब्बी मिन कुल्ली जंमबी अज़नंंमतू आमादन अउ खताआ सिर्रन अउ अलानियतअउ वआतुबु इलय्हि मिनज़ जंमबिल लज़ी आलमु व मिनज़ जंमबिल लज़ी ला आलमु इन्नका अंता अल्लामुल गुयुबे वसत्तारूल गुयुबे व गफ़्फ़ारूज़ ज़ूनुबे वला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलियिल अज़ीम ,
इसका तर्जुमा : मैं अल्लाह से माफ़ी मांगता हूँ जो मेरा परवरदिगार है हर गुनाह से जो मने किया जान बूझकर या भूलकर या चाहा कर में तौबा करता हूँ उसके हुज़ूर में उस गुनाह से जो मुझे मालूम है और उस गुनाह से जो मालूम नहीं बेशक तू ग़ैब का हाल जानने वाला है और गुनाहो को बक्शने वाला है और गुनाहो से
बचने की ताक़त और नेक काम करने की कुव्वत अल्लाह ही की तरफ से है जो आलिशान और अज़ीम वाला है
छठा कलमा : छठा कलमा कुफ्र : अल्लाह हुम्मा इन्नी आऊज़ुबिका मिन अन उशरिका बिका शयआउ व अन्ना आलमु बिहि व अशतगफिरुका लिमा ला आलमु बिहि तुब्तु अन्हु वताबराअतू मीनल कुफरे वशीरके वलकीज़बे वलगीबते वलमिदआती वन्नामिमति वलफवा हिशी वलबहातन वलमआसी कुल्लीहा व असलमतो व अकुलू ला इलाहा इल्ललाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ,
इसका तर्जुमा : इलाही में तेरी पनाह मांगता हूँ इस बात से के तेरा शिर्क बनाऊ उस चीज़ को जिसे में जनता हूँ और माफ़ी मांगता हूँ उस गुनाह से जिस का मुझे इल्म नहीं मेने उससे तौबा की और में बेज़ार हूँ कुफ्र से और शिर्क से झूट से ग़ीबत से बदअमनी से चुगली से और बेहयाई के कामो से और तोहमत लगाने
से और बाकि हर किस्म की नाफ़रमानियों से और में ईमान लाया और में कहता हूँ के अल्लाह के सिवा कोई मआबुद नहीं हज़रत मोहम्मद ( सल्लाहु अलैहि वसल्लम ) अल्लाह के रसूल है
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कलमे की ताक़त
हकीकत में कलमा पर अमल किया जाये तो आज भी सहाबा इकराम जैसी अल्लाह की मदद उतर सकती है आज भी अगर मुसलमान की ज़िन्दगी उस कलमे के मुताबिक़ बन जाये तो अल्लाह ताल्हा की मदद उस तरह आ सकती है जिस तरह सहाबा इकराम पर उतरती थी ,
अल्लाह ताल्हा ने जब भी बातिल को तोडा कुफ्र को मिटाया वो उस कलमे की मोहब्बत के सबब तोडा जब इखलास और कुव्वत के साथ कलमा वजूद में आता है तो बातिल को तोड़ देता है जब कोई कोम हलाक होती वो मुस्लमान हो या काफिर , इस लिए हलाक नहीं हुए के उन के पास ताक़त की कमी थी या दुनियावी असबाब न थे या अल्लाह का दस्तूर है और क़यामत तक रहेगा के जब लोगो के अमाल मेरे हुकुम के खिलाफ होंगे तो में नहीं हलाक और बर्बाद कर दूगा और कोई नहीं बच सकेगा _ अल्लाह की सुन्नत है के हम हक़ को बातिल पर फेकते है तो बातिल का नामो निशान मिट जाता है _
ये उस वक़्त होता है जब कलमे वाले कलमा को सिख लेते है और कलमे के मुताबिक़ उन की ज़िन्दगी ढल जाती है फ़रमाया के तुम में से पहले लोगो को बड़ी बड़ी हुकूमते और बड़े बड़े ओहदे दिए गए उन पर बारिशो के निज़ाम चलाये और दरिया के लिए मशहूर किये गए जब मेरे अमीर से न फरमान हुए और मेरे साथ टकराये तो फिर मेने उनको हलाक कर दिया और मेरे रसूलो से टकराये तो मेने उनको हलाक कर
दिया जिस की वजह से बेशुमार बस्तियों और मुल्क बर्बाद हुए हज़रत नूह उस कलमे को लेकर उठे , सामने पूरी दुनिया का बातिल निज़ाम है लेकिन आप ने पूरी मोहब्बत के साथ उन तक कलमा यानि अल्लाह का पैगाम पहुंचाया लेकिन सिर्फ 80 या 82 लोगो ने इस दावते हक़ को क़ुबूल किया ,आपने साढ़े नोसो साल तक लोगो पर उस कलमे से मोहब्बत की ,नबी अल्लाह की अज़मत को खुद अपने और लोगो के दिलो में बैठाया है हर नबी यही काम करता है _
तमाम अम्बियान कलमे से मोहब्बत करते थे और लोगो को बताते थे के लोगो ” ला इलाहा इल्लाह ” पढ़ लो , कामयाब हो जाओगे , कामयाबी माल ,मुल्क और ओहोदे में नहीं बल्कि अल्लाह ताल्हा के एहकाम को मानने में है कलमा यकीनन दिल में उतार ने से ज़िन्दगी बनती है ज़िन्दगी का बनना और बिगड़ना अल्लाह पाक के हाथ में है , अल्लाह ताल्हा जिसे चाहे कामयाब करदे और जिसे चाहे नाकाम करदे कलमा खाली बोल नहीं ‘ बल्कि उस का मफ़हूम ये है के अल्लाह के हुकुम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुजारो यानि अल्लाह से सब कुछ होने का यकीन और मखलूक से कुछ न होने का यकीन _
आज भी अगर मुस्लमान की ज़िन्दगी उस कलमे के मुताबिक़ बन जाये तो अल्लाह ताल्हा की मदद उस तरह आ सकती है जिस तरह सहाबा करीम पर उतरती थी , कलमा भी वही है और उस का मफ़हूम और मकसद भी वही है लकिन कलमा पढ़ने वाले बदल चुके है आज गुनाहो की कसरत की वजह से हमारे दिल सियाह हो चुके है और हम अल्लाह पाक की ज़ात और शफ़ाअत को भूल चुके है आज मुसलमानो की जवाल की सबसे बड़ी वजह ये है की हमारी मआशरत ,शियासत गरज़ की ज़िन्दगी के तमाम पहलु कलमे के मुताबिक़ नहीं है
हम अपनी मन मानी की ज़िन्दगी गुज़ार रहे है और उसी वजह से हमारे साथ अल्लाह की मदद और नफरत नहीं है अगर हम आज भी कलमे के मुताबिक़ अमल करने वाले बन जाये तो हमारे ऊपर भी सहाबा इकराम जैसी अल्लाह की मदद उतर सकती है दुआ है की अल्लाह ताल्हा कलमा के यकीन को हमारे दिलो में उतार दे ( अमीन )
कलमा ए तय्यब की अज़मतो , कुरान व हदीस की रौशनी में
कलमे का पहला ज़ज़ोहर नबी की दावत में वही है जो अल्लाह ने कहा है कलमे के दूसरे ज़ज़ों में रसूल इकराम की रिसालत का इकरार है , अब जो शख्श इस कलमे को माने वही मुस्लमान है :
अल्लाह के सिवा कोई मआबुद नहीं और मोहम्मद अल्लाह के रसूल है , इस्लाम का पहला रूकून कलमा तय्यब है यही वज़ह कलमा है जिसे पढ़ कर इंसान साहब ईमान बनता है ये कलमा बन्दे की तरह से तौहीद और सालत को दिल से क़ुबूल करने और जबान से इज़हार करने का इकरार है ,
उसी कलमे के इकरार के लिए अल्लाह ताल्हा ने ये कायनात तखलीख फ़रमाई यही वो कलमा है जिसे उसने अर्श पर लिख दिया है यही कलमा हुस्न अज़ल की नमूद है ज़मीन व आसमान इस कलमे की मिरह सिरह है इंसानो में कलमा की तस्दीक और इकरार का सिलसिला मालूम रवाई से शुरू हुआ , इसके मुतालिक इरशाद बारी ताल्हा है
कलमा तय्यब से मुराद ला इलाहा इल्लाह मुहम्मदुर रसूल अल्लाह है और इस पर ईमान लाना ज़रूरी है इस कलमे का इंकार कुफ्र है _
कलमा तय्यबा ही में तमाम मुसीबत का हल ,मुश्किल कुसाई इस्म अज़ीम और बरकत व खैर मज़मूर है इस के बगैर इंसान सब कुछ बन सकता है मगर जानते नहीं इसके विर्द करने से चेहरे पर नूर और दिल में शुरुर आता है इसी कलमे से इब्तिदा और इसी पर इंतिहा है जिसने इस कलमा तय्यब से प्यार फैलाया वो दुनिया व आख़िरत में सुर्खुरू हुआ इस लिए हर मुस्लमान फ़र्ज़ नमाज़ के बाद बा आवाज़ बुलंद इस कलमा ए तय्यब के विर्द की तरफ रागिब करते है
जिसको वक़्त नहीं रह कलमा तय्यब नसीब हो गया उसकी बक़शिश व मगफिरत यकीनन हो गयी मुस्लमान आलिमे इस्लाम को इख्तिलाफ भला कर कलमा तय्यब पर मुत्तहिद हो जाना चाहिए क्यूंकि ये इस्लाह मोमिन और काफिर का सबब है कलमा तय्यब से बढ़ कर कोई वजीफा नहीं अल्लाह ताल्हा हमे कलमा तय्यब के तमाम शुमारात हासिल करने की तौफीक अता फरमाए ( अमीन ) .
कलमा तय्यब और उसके तक़ाज़े
इस का इकरार करने वाले के लिए तमाम मयार अल्लाह और उस के रसूल के एहकामात है :
ला इलाहा इलल्लाहु मोहम्मदुर रसूल अल्लाह ये महज ज़बान से अदा कर देना काफी नहीं बल्कि ये अक़ीदा , ईमान और तोहिद का राज़ है जो एक मोमिन के सीने में नूर की तरह रोशन होता है ये हर मुस्लमान और उसके जिस्म व रूह को नूर ईमान से मुनव्वर कर देता है देखने में ये एक मुख़्तसर सा कलमा है लकिन इसकी हकीकत पूरी कायनात पर महायत और हर शेह पर हादी है एक मर्तबा इसका इकरार करने से इंसान कुफ्र और ज़हालत के अंधेरो से निकल कर नूर ईमान की वादियों में दाखिल हो जाता है ,
ये वो अमानत है जिसे आसमानो ज़मीन और पहाड़ो पर पेश किया गया तो वो उसे न उठा सके कलमा तोहिद के मुताबिक अमल करना इंसानो और जिन्नो की तख़लीक़ का मकशद है अल्लाह तबारक व ताल्हा का इरशाद है के मैने इंसानो और जिन्नो को सिर्फ इसलिए पैदा किया है की वो मेरी इबादत करे कुरान पाक में इरशाद बारी है बर्बादी है उन नमाज़ो के लिए जो दिखावे की नमाज़े पढ़ते है यानि इज़हार उनके इखसाम खुदा के सामने सर पेश है लेकिन दिल में गैर मोहब्बत कायम रहती है दर असल जिससे मोहब्बत होती है ज़िन्दगी उसी की होती है जब तक दिल में गैर मोहब्बत कायम रहती है इंसान मुसलसल हालत ए सिर्क में रहता है और ” ला इलाहा इलल्लाह ” का तकाज़ा पूरा नहीं होता इसी हालते मुनाफिकना को खत्म करने के लिए ” ला इलाहा “
ला इलाहा ” की ज़र्ब से दिल को गैर अल्लाह से पाक किया जाना ज़रूरी है और ये उस वक़्त तक मुमकिन नहीं जब तक हमे कलमा तय्यब की मानी और उस हकीकत का मख्मूल शऊर हासिल न हो ” ला इलाहा इलल्लाह ” वो कलमा है जिस का इक़रार करते हुए मोमिन के सिवाए अल्लाह के सब की नफ़ी कर देता है जब ज़बान से लफ्ज़ ” ला ” निकलता है जिस का मुत्तलिब नफ़ी है तो वो अपने तसव्वुर में क़ायनात की हर शेह से अलग हो जाता है वजूद हकीकत के तसव्वुर में इस क़दर गम होता है के अपने वजूद की भी नफ़ी कर देता है उस की नज़र में तमाम असबाब मुनक़ता हो जाते है
सबब और असबाब पर नज़र होती है और उस पर मुतवक्किल हो जाते है ” ला इलाहा से हकीकत वाजेह हो जाती है के इबादत की तमाम अनवाह का इस्तिहकाक सिर्फ अल्लाह की ज़ात को हो के इबादत काली हो या फाली हो या अक़ाइद से सब की सब अल्लाह के लिए खास कर दी जाये इलाहा अल्लाह का मुत्तलिब ये है के तमाम मोजुदुआत हकीकत में अल्लाह के साथ कायम है यानि मुजूद सिर्फ अल्लाह की ज़ात है कलमा तय्यब का दूसरा हिस्सा ईमान है जिसका इक़रार करके हम ( हज़रत मोहम्मद सल्लाहु अलैहि वस्सल्लम ) को अल्लाह का सच्चा और आखिरी रसूल मानते है ईमान का ये तकाज़ा है
के हम नबी सल्लाहु अलैहि वस्सल्लम के बताये हुए तरीके के मुताबिक बसर करे , इस से कुरान पाक इरसाद होता है बेशक तुम्हारे लिए मेरे मेहबूब की ज़िन्दगी ही बेहतरीन रास्ता है वही राह निजात है नमूना और रास्ता है मोहम्मद रसूलल्लाह का इक़रार करने के उम्मत मुस्तफा सल्लाहु अलैहि वसल्लम में दाखिल हो जाते है तमाम रंग व नस्ल ज़बान कॉम जिगर आफिया खत्म हो जाते है और हमारी पहचान सिर्फ तोहिद और इस के बाद रसूल अकरम सल्लाहु अलैहि वसल्लम की गुलामी है
अब मुस्लमान हम कुरान अल्लाह और उस के रसूल सल्लाहु अलैहि वसल्लम के एहकामात के पाबंद है और यही मयार है क़यामत तक के लिए जो इस मयार पर पूरा नहीं उतरता उस के बरक्श अमल करता है वो न खुद सही मुस्लमान है न उसका कौल या अमल काबिल तकाईद है और ऐसे लोगो की तकाईद करने वाले भी ज़ाहिल है और उन का अमल कलमा तय्यब के बरक्श है कलमा तय्यब के इक़रार करने वाले के लिए मयार सिर्फ अल्लाह और उस के रसूल अल्लाह के एहकामात है .
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