Lesson 2 – Common Errors Committed by Muslims During Ramadhaan : पाठ 2 – रमज़ान में की जाने वाली आम गलतियाँ
रमज़ान का महीना आत्मिक सुधार और इबादत का पवित्र समय होता है, लेकिन कई बार अनजाने में हम कुछ गलतियाँ कर बैठते हैं। आइए जानें रमज़ान के दौरान की जाने वाली कुछ आम गलतियों के बारे में:
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Common Errors Committed by Muslims During Ramadhaan नियत (इरादा) की कमी:
रोज़ा रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है सही नियत (इरादा) का होना। अगर आपने सुबह सही नियत के साथ रोज़ा रखने का इरादा नहीं किया, तो आपका रोज़ा शायद क़बूल न हो।

Common Errors Committed by Muslims During Ramadhaan : सहरी और इफ्तार के समय में गलती:
सहरी का समय रात के आखिर से शुरू होकर फज्र (सूरज निकलने से पहले) तक होता है। सहरी न करना या फिर सूर्योदय के बाद खाना खा लेना रोज़े को तोड़ सकता है। इसी तरह इफ्तार का समय सूर्यास्त के बाद से शुरू होता है। सूर्यास्त से पहले खाना या पीना रोज़ा तोड़ सकता है।

ग़लत चीज़ों का सेवन:
रोज़े के दौरान सिर्फ खाने-पीने से ही रोज़ा नहीं टूटता। धूम्रपान करना, नशा करना या किसी भी तरह से शरीर में धुआँ या अन्य पदार्थ पहुँचाना भी रोज़ा तोड़ सकता है।

गुस्सा होना और गाली देना:
रमज़ान का महीना सब्र और संयम का है। गुस्सा होना, गाली देना या किसी के साथ बुरा बर्ताव करना रोज़े के असल मकसद के खिलाफ है।

ज्यादा खाना पीना:
रमज़ान सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं है। इफ्तार और सहरी में संतुलित मात्रा में खाना चाहिए। बहुत ज्यादा खाना पीना पाचन संबंधी समस्या पैदा कर सकता है और रोज़े रखने में दिक्कतें पैदा कर सकता है।

पूरे दिन सुस्त रहना या रात भर जागना:
रोज़े के दौरान दिन में थका हुआ महसूस होना आम है। लेकिन पूरे दिन सोते रहना या रात भर जागते रहना रोज़े के फायदों को कम कर सकता है। दिन में हल्का काम करना और रात में क़यामुल लैल (रात की इबादत) के लिए उठना ज्यादा बेहतर है।

दूसरों की बुराई करना और ग़ीमत लगाना:
रमज़ान का महीना परोपकार और नेक काम करने का है। किसी की बुराई करना, ग़ीमत लगाना या झूठ बोलना रोज़े की पवित्रता को कम कर देता है।
टीवी देखना या फिल्में देखना:
रोज़े के दौरान टीवी या फिल्में देखने में व्यस्त रहना आपको अल्लाह की इबादत से दूर रख सकता है। अपना समय कुरान पढ़ने, ज़िक्र करने और दुआ करने में लगाना ज्यादा फायदेमंद है।
जकात और फितर में देरी करना:
रमज़ान के दौरान या ईद से पहले ही ज़कात और फितर निकाल देना चाहिए। इसमें देरी करना अच्छा नहीं माना जाता है।
ईद के दिन शोक मनाना:
ईद का दिन खुशी का दिन होता है। इस दिन ग़मगीन रहना या शोक मनाना इस्लामिक परंपरा के अनुसार ठीक नहीं माना जाता है।
रमज़ान के महीने का असली मकसद आत्मिक सुधार, इबादत और परोपकार करना है। उपरोक्त गलतियों से बचने की कोशिश करके हम रमज़ान के फायदों को पूरा-पूरा उठा सकते हैं।