पांच वक़्त की नमाज़ : नमाज़ मुसलमान पर फ़र्ज़ कब हुई ,हदीस ए पाक में फ़रमाया है हर मुस्लमान पर पांच वक़्त की नमाज़ हमारे हुज़ूर नबी ए करीम मुस्तफा सल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने से फ़र्ज़ हुई है।
पांच वक़्त की नमाज़ : रब के करीब
नमाज़ की अहमियत : नमाज हमें अपने रब के करीब करती है और अपने खुदा से बात करने का मौका देती है।
गुनाहो से माफी: नमाज से हम अपनी गुनाहो की माफ़ी तलब करते है जिससे हमें अपने गुनाहों से माफी मिलती है।
सब्र और शुक्रगुज़ारी: नमाज हमें हर मुश्किलों में सब्र रखने और अल्लाह का शुक्रगुज़ार रखती है।
क़वाइद : नमाज पढ़ने से नियम और वक़्त का पाबंद रहने की आदत लगती है।
रूह को सुकून : नमाज पढ़ने से रूह दिल और दिमाग को सुकून मिलता है।
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बदन के फायदे: पांच वक़्त की नमाज़
तंदरुस्ती : नमाज में रुकू, सजदा शामिल हैं, जो बदन को तंदरुस्त रखता हैं।
खून का बहाव : नमाज पढ़ने से खून का बहाव बेहतर होता है।
पाचन : नमाज पढ़ने से पाचन मज़बूत होता है।
परेशानी कम होना: नमाज पढ़ने से तनाव परेशानी और रंजिशे कम होती है।n
नींद में बेहतरी : नमाज पढ़ने से नींद अच्छी आती है और रूह को सुकून मिलता है
यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि नमाज का असली मकसद सिर्फ फायदे हासिल करना नहीं है, बल्कि अल्लाह की इबादत करना और उसकी रज़ा हासिल करना है। जब हम नमाज सिर्फ फायदों के लिए पढ़ते हैं, तो उसका असली फायदा हमें नहीं मिल पाता नमाज़ पढ़ने का मकसद हमारा बदन के फायदे हासिल करना नहीं बल्कि हमे अल्लाह की रज़ा हासिल करना है नमाज़ पढ़ते वक़्त हमारी नियत और इरादे साफ़ होना चाहिए ताकि अल्लाह हमारी नामज को क़ुबूल करले
पांच वक़्त की नमाज़
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नमाज पढ़ने के कुछ और फायदे:
- नमाज से रफाकत इत्तिहाद और अमन रहता है।
- नमाज से बंदा नेक बनता है।
- नमाज से बंदा बुराईयां कम कर देता अच्छे काम करने लगता हैं।
- नमाज से बन्दे को आख़िरत में जन्नत मिलती है।
नमाज़ हर मुस्लमान की अव्वल दर्जी है जिसे उस बन्दे को मुकम्मल करनी है नमाज़ से हर मुस्लमान बन्दे की दुनिया और आख़िरत सवरती है हर आक़िल व बालिग मुस्लमान मर्द व औरत के लिए तहारत के वो अहकाम सिखने फर्ज़े आइन है जिनसे नमाज़ दुरुस्त हो सके
पांच वक़्त की नमाज़
ये सिर्फ कुछ फायदे हैं, लेकिन नमाज का पहला और कई फायदे यह है कि यह हमें दिनभर के रोज़मर्रा के कामो पर ध्यान देने का एक मौका देता है , जिससे हमारी अच्छी आदतें बनी रहती हैं। वैज्ञानिक तर पर भी डॉक्टर और वैज्ञानिको ने भी माना है की नमाज़ पढ़ने से दिल दिमाग और बदन की तंदरुस्ती बनी रहती है
पांच वक़्त की नमाज़
नमाज़ के नुकसान
इस्लाम में हर चीज़ किसी ना किसी मकसद के साथ अल्लाह ने बन्दों के लिएअता किया और हर चीज़ के फायदे भी दिए गए है तो इसी तरह अल्लाह ने हम बन्दों के लिए नमाज़ के जरिए फायदे अता तो किये है पर अल्लाह ने हमे नमाज़ पढ़ने से नुकसान नहीं बल्कि अपने बन्दों को नमाज़ के जरिए फायदे दिए है पर नमाज़ ना पढ़ने से बंदा नुकसान में रहता है और हर तरह की बीमारियों में घिरा रहता है नमाज़ के जरिए अल्लाह ने हर मुस्लमान बन्दों के लिए हर जिस्मानी और जेहनी बीमारियों से शिफा अता फ़रमाई है
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नमाज़ पढ़ने से पहले के फ़र्ज़
पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ने से पहले हर बन्दे को जिस्म पाक करना होता है और साफ़ कपड़े पहनने है और फिर उस बन्दे को वुज़ू करना भी फ़र्ज़ है तब ही नमाज़ मुकम्मल मानी जाती है वुज़ू और ग़ुस्ल के तयम्मुम का एक ही तरीका हैं
वुज़ू से क्या होता है
हमारे नबी ऐ करीम सल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते है ;जो बंदा कामिल वुज़ू करता है उसके अगले पिछले सभी गुनाह माफ़ कर दिए जाते है बिना वुज़ू के नमाज़ मुकम्मल नहीं है और बिना वुज़ू के नमाज़ कुफ्र है जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी वुज़ू है
वुज़ू करते वक़्त क्या करे
वुज़ू के 4 फ़राइज़ हैं वुज़ू करते वक़्त हर चीज़ का धयान देना ज़रूरी होता हैं क्योकिवुज़ू सही ना हुआ तो नमाज़ मुकम्मल नहीं और वुज़ू करते वक़्त कोई बंदा अपने बदन के किसी हिस्से को धोने से रह गया तो उसे इस सूरत में बाया पाऊ[यानि लेफ्ट पैर धो लिया जाये तो उससे वुज़ू मुकम्मल मन जाता हैं बेसिन पर खड़े होकर वुज़ू करना ख़िलाफ़े मुस्तहब हैं
वुज़ू कब फ़र्ज़ है
हम पर वुज़ू फ़र्ज़ है ;नमाज़ ,सजदा ऐ तिलावत ,और कुरान ऐ अज़ीम छूने के लिए वुज़ू करना फ़र्ज़ है
वुज़ू कब वाज़िब है
हम पर वुज़ू वाज़िब तवाफ़े बैतुल्लाह शरीफ के लिए वुज़ू करना वाज़िब हो जाता है
वुज़ू करना कब सुन्नत है
वुज़ू करना सुन्नत है ग़ुस्ल जनाबत से पहले ,जनाबत से नापाक होने वाली को खाने पिने और सोने के लिए ,हुज़ूर नबी ऐ करीम की रोज़ ऐ मुबारक की ज़ियारत ,वुक़ूफ़े अरफ़ा ,साफा व मारवाह के दरमियान साए के लिए वुज़ू करना सुन्नत है
वुज़ू कब मुस्तहब हैं
वुज़ू हम पर सोने के लिए ,नींद से बेदार होने पर ,गुस्सा आ जाये उस वक़्त ,ज़बानी क़ुरान ऐ अज़ीम पढ़ने के लिए ,दीनी क़ुतुब छूने के लिए वुज़ू करना मुस्तहब हो जाता हैं
वुज़ू करने के बाद क्या पढ़ना चाहिए ;
हमारे नबी ऐ करीम फरमाते हैं की वुज़ू करने बाद कलमा ऐ शहादत पढ़ना चाहिए हदीसे ऐ पाक में हैं जिसने अच्छी तरह वुज़ू किया और कलमा ऐ शहादत पढ़ा उअके लिए जन्नत के आठों दरवाज़े खोल दिए जाते हैं जिससे चाहे अंदर दाखिल हो सके
नमाज़ अदा करने से पहले क्या करे
पांच वक़्त की नमाज़ : नमाज़ अदा करने के लिए जगह को भी पाक किया जाता हैं ताकि हमारी नमाज़ में कोई दिक्कत न हो और नमाज़ अदा करने से पहले अपने कपड़ो को भी साफ़ रखना ज़रूरी हैं और हमारा कपडा इतना बारीक़ न हो जिसमे बदन चमकता हो सत्र के लिए काफी नहीं उसमे नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ नहीं होगी
और चुराया हुआ कपडा या धोबी वगैरा से बदला हुआ कपडा भले ही पाक व साफ़ हो मगर उसे पहन कर नमाज़ पढ़ना मकरूह तहरीमी ,ना जायज़ और गुनाह हैं नमाज़ वाजिबुल मियाद होगी [यानि नमाज़ फिर से पढ़नी होगी ] और ऐसे कपडे का पहनना मर्द व औरत सबको हराम हैं
पांच वक़्त की नमाज़ में सज़दा और रुकू करना वाजिब होता हैं
इसके बिना नमाज़ मुकम्मल नहीं हैं नमाज़ की कुंजी जन्नत हैं हम अपनी नमाज़ का रुख क़िबला की तरफ किया जाता हैं और अगर क़िब्ले किसी बन्दे को क़िब्ले की सिम्त ना मालूम हो तो वो बंदा तहर्रि करे [यानि सोचे जिधर क़िब्ला होना दिल पर जमे उधर ही मुँह करे सजदे में पेशानी को पाक जगह होनी चाहिए नाक दिरहैम से कम जगह पर लगती हैं लेकिन बिला ज़रुरत ये भी मकरूह हैं
हम नमाज़ किसी भी तरफ मुँह करके नहीं पढ़ सकते हैं
पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ते वक़्त हमारा रुख सिर्फ काबे की तरफ होता है ये सारी चीज़े सही हो जाती हैं हम अपनी नमाज़ को अगर किसी भी मुँह की तरफ पढ़ना चाहते हैं तो ये सिर्फ काबा शरीफ की ईमारत के अंदर या उसकी छत्त पर नमाज़ पढ़े तो जिस तरफ भी चाहे मुतवज्जेह हो कर नमाज़ पढ़ना जाइज़ हैं
नमाज़े रुकू में दूसरी रकत के रुकू की तकबीर कहना वाजिब है रुकू का अदना दर्ज़ा इतना झुकना की हाथ बढ़ाये तो घुटने तक पहुँच जाये यर रुकू का अदना दर्ज़ा है रुकू का मुकम्मल दर्ज़ा इतना झुकना की पीठ सीधी बिछा दे यह रुकू का पूरा दर्ज़ा है तो ही हमारी नमाज़ मानी जाएगी
नमाज़ पढ़ते वक़्त सजदे में जब गलती हो जाये तो सजदा ऐ साहब कर लिया जाये सजदा ऐ साहब के बाद अत्तहिय्यात पढ़ना वाजिब हैं हर रकात में दो सज़दे करना फ़र्ज़ हैं
नमाज़ कैसे अदा की जाये
पांच वक़्त की नमाज़ : नमाज़ की नियत करी जाती है [ नियत की मेने 2 रकात नमाज़ फ़र्ज़ वास्ते अल्लाह तलाह के वक़्त फज्र का रुख मेरा काबे शरीफ की तरफ अल्लाह हु अकबर करके फिर पहली रकात में सना पढ़े [सुबहाना कल्ला हुम्मा ] फिर अल्हम्दु पढ़े और फिर सूरह इखलास पढ़ कर रुकू में चले जाते है रुकू में सुबहाना रब्बी यल ‘अज़ीम ‘ पढ़ कर सीधे खड़े हो जाते है फिर अल्लाह हु अकबर कहते हुए सज़दे में चले जाते है और दोनों सज़दो के दरमियान सुबहाना रब्बी यल ‘आला ‘ पढ़ते है
और इसी तरह दोनों रकत में यही किया जाता है फिर सज़दे मुकम्मल होने के बाद बैठ कर अत्तहिय्यात पढ़ा जाता है अत्तहिय्यात के बाद सलाम फेर लिया जाता हैं और सलाम फेरने पर अस्सलामु वराहमुत्तुल्ला पढ़ा जाता हैं और नमाज़ मुकम्मल हो जाती है
नमाज़ के शराइत : पांच वक़्त की नमाज़
नमाज़ के 6 शराइत हैं तहारत ,सिटरे औरत ,इस्तिक़बाले क़िब्ला ,वक़्त ,नियत ,तकबीर एतहरीम
नमाज़ में कोन से क़ियाम है
पांच वक़्त की नमाज़ में फ़र्ज़ ,वित्र,एदइं और सुन्नत ए फज्र में क़ियाम फ़र्ज़ है और अगर बिला उज़्र सहीह कोई ये नमाज़े बैठ कर अदा करेगा तो न होगी
नमाज़े वित्र
फ़र्ज़ नमाज़ के बाद और भी नमाज़ है जो हमे पढ़नी होती हैं जैसे नफिल नमाज़े और वित्र नमाज़े यर नमाज़े हमारी इबादत में होती हैं वित्र नमाज़ का वक़्त ईशा के फ़र्ज़ों के बाद से सुबह सादिक़ तक है नमाज़े वित्र हर इंसान पर वाजिब है अगर किसी इंसान की वित्र नमाज़े छूट जाये तो इसकी क़ज़ा लाज़िम है वित्र की नमाज़ में तकबीर इ क़ुनूत पढ़ने का भी हुकुम है और ये तीसरी रकअत में किरात के बाद तकबीर इ क़ुनूत कहना वाजिब हैं
नमाज़े नवाफिल
नमाज़े नवाफिल फ़र्ज़ नहीं होती हैं ये नमाज़े इबादत में पढ़ी जाती हैं अगर ये नमाज़े छूट जाये तो इन नमाज़ो की क़ज़ा
नहीं होती हैं और अगर कोई बाँदा इन नमाज़ो को अदा करले तो इनका सवाब फ़र्ज़ नमाज़ो से भी ज्यादा हैं नवाफिल नमाज़ में दिन और रात का धियान रखना पढता है क्योकि इसमें रकत का फर्क है दिन के नफिल में एक सलाम के साथ 4 रकअत से ज्यादा नहीं पढ़ सकते और रात में 8 रकअत से ज्यादा नाजी पढ़ सकते अगर किसी ने एक सलाम में ज्यादा पढ़ी तो वो नमाज़ मकरूह हो जाएगी
नमाज़े तहज्जुद
हदीस ए पाक में फ़रमाया है फ़र्ज़ वित्र और नवाफिल नमाज़ो में से सबसे अफ़ज़ल नमाज़ वो है जो रात की नमाज़ है नवाफिल नमाज़ में सबसे अफ़ज़ल नमाज़ हैं वो तहजूद की नमाज़ है तहज्जुद की नमाज़ को अल्लाह सबसे ज्यादा पसंद फरमाता हैं इस नमाज़ को ऐडा करने के लिए सोना ज़रूरी होता है इस तहज्जुद की नमाज़ का वक़्त ईशा की नमाज़ से ही शुरू हो जाता हैं और अगर इस नमाज़ से पहले नवाफिल नमाज़ पढ़ी जाये वो नमाज़ तहज्जुद की नहीं है
सलातुल लेल की नमाज़
सलातुल लेल की नमाज़ ईशा की नमाज़ के बाद जो नवाफिल पढ़े जाये उसे सलातुल लेल की नमाज़ कहते है
सलात उल अव्वाबीन
सलात उल अव्वाबीन भी नमाज़ है इससे नमाज़े मगरिब के फर्ज़ो के बाद जो 6 रकअत अदा की जाती है उन्हें सलात उल अव्वाबीन की नमाज़ होती है
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