The third part of the Quran (पहला हिस्सा) सूरह बक़रह के बचे हुए हिस्से में तीन बातें हैं: 1- दो बड़ी आयतें, 2- दो नबीयों का ज़िक्र, 3- सदक़ा और सूद , The third part of the Quran : कुरआन पाक तीसरा पारा इस पारे में दो हिस्से हैं: 1- बची हुई सूरह बकरह 2- सूरह अल-इमरान की शुरुआत
RUHANIYAT
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MD ALFAIZ
The third part of the Quran 1- दो बड़ी आयतें
The third part of the Quran एक आयतल कुर्सी है जो फ़ज़ीलत मे सबसे बड़ी है, इसमें सत्तरह मर्तबा अल्लाह तआला का ज़िक्र है दूसरी आयत आयते दैन जो मिक़्दार मे सबसे बड़ी है इसमें तिजारत (व्यापार) और क़र्ज़ का ज़िक्र है
The third part of the Quran 2- दो नबियों का ज़िक्र
एक हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम का नमरूद से मुबाहसह (Discussion) और अहयाए मौता (मौत के बाद दुबारा ज़िन्दगी देना) के मुशाहेदे (देखने) की दुआ, दूसरे ओज़ैर अलैहिस्सलाम जिन्हें अल्लाह तआला ने सौ साल तक मौत देकर फिर ज़िन्दा किया
The third part of the Quran 3- सदका और सूद
बज़ाहिर सदके से माल कम होता है और सूद से बढ़ता है, मगर हक़ीक़त मे सदके से बढ़ता है और सूद से घटता है
( दूसरा हिस्सा) सूरह अल-इमरान का जो इबतेदाई हिस्सा इस पारे मे है उसमे चार बातें हैँ :
1- सूरह बक़रह से मुनासबत (मिलती जुलती)
2- अल्लाह तआला की कुदरत के चार किस्से
3- अहले किताब से मुनाज़रह (हुज्जत, बहस) , मुबाहलह (एक दूसरे के हक़ मे बद्दुआ करना), मुफाहमह
4- अम्बियाए साबेकीन से अहेद
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1- सूरह बक़रह से मुनासबत
मुनासबत यह है की दोनों सूरतो मे क़ुरआन करीम की हक्कानीयत (हक़ पर होना) और अहले किताब से खेताब है, सूरह बक़रह मे अक्सर खेताब यहूद से है जबकि सूरह अल-इमरान मे अक्सर रुए सोखन नसारा (ईसाई) की तरफ है
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2- अल्लाह तआला की कुदरत के चार किस्से
पहला किस्सा जंगे बद्र का है तीन सौ तेरह ने एक हज़ार को शिकस्त दे दी, दूसरा किस्सा हज़रत मरियम अलैहिस्सलाम के पास बेमौसम फल के पाए जाने का है, तीसरा किस्सा हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम को बुढ़ापे मे औलाद अता करने का है, चौथा किस्सा हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का बगैर बाप के पैदा होने, बचपन ही मे बोलने और ज़िन्दा आसमान पर उठाये जाने का है
3- अहले किताब से मुनाज़रह, मुबाहलह, मुफाहमह
अहले किताब से मुनाज़रा हुआ, फिर मुबाहेला हुआ कि तुम अपने अहलो अयाल को लाओ, मैं अपने अहलो अयाल को लाता हूँ, फिर मिल कर ख़ुशुअ व खुज़ुअ से अल्लाह तआला से दुआ मांगते हैँ कि हममे से जो झूठा है उसपर अल्लाह की लानत हो, वो तय्यार न हुए तो फिर मुफाहमह हुआ यानि ऐसी बात की दावत दी गई जो सबको तस्लीम हो और वह है कलमए “ला इलाह: इल्लल्लाह”
4- अम्बियाए साबेकीन से अहेद
अम्बियाए साबेकीन से अहेद लिया गया कि जब आखिरी नबी आए तो तुम उसकी बात मानोगे, उसपर ईमान लाओगे, और अगर तुम्हारे बाद आये तो तुम्हारी उम्मतें उस पर ईमान लाएं
Qur’an के तीसरे पैरा (Para 3), जिसे “अल-इमरान” ( آل عمران ) के नाम से भी जाना जाता है, में कई महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं। यहां कुछ मुख्य विषय हैं:
Qur’an के तीसरे पैरा (Para 3), जिसे “अल-इमरान” ( آل عمران ) के नाम से भी जाना जाता है, में कई महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं। यहां कुछ मुख्य विषय हैं:
ईश्वर की एकता: पैरा ईश्वर की महानता और एकता पर बल देता है। यह उन लोगों की निंदा करता है जो बहुदेववाद में विश्वास करते हैं।
पैगंबरों की कहानियां: पैरा में हज़रत इबراهيم (अलैहिस्सलाम), हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम), हज़रत ईसा (अलैहिस्सला سلام) और अन्य पैगंबरों की कहानियां बताई गई हैं। इन कहानियों के माध्यम से ईश्वर की आज्ञाकारिता और सच्चे रास्ते पर चलने का पाठ दिया जाता है।
मريم (अलैहिस्सलाम) की कहानी: पैरा में हज़रत मريم (अलैहिस्सलाम) की कहानी का विस्तार से वर्णन किया गया है।
बनी इスラइल की कहानियां: पैरा में बनी इスラइल के इतिहास के बारे में भी बताया गया है, जिसमें उनकी ईश्वर की आज्ञाओं को तोड़ने और इसके परिणामों का वर्णन है।
ईमान (विश्वास) और अच्छे कर्मों का महत्व: पैरा इस बात पर बल देता है कि सच्चा मुसलमान होने के लिए सिर्फ ईश्वर में विश्वास करना ही काफी नहीं है, बल्कि अच्छे कर्म करना भी जरूरी है।
यह सिर्फ तीसरे पैरा के कुछ मुख्य विषय हैं। पूरे पैरा को समझने के लिए इसका अध्ययन करना या किसी विद्वान से इसका अर्थ जानना उत्तम है।